श्रीनारायणभट्टजी का नारद स्वरूप 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌷एक बार की बात है कि श्रीनारायणभट्टजी मथुरा में थे, माघ महिना था, बहुत से लोग तीर्थराज प्रयाग में श्रीत्रिवेणी स्नान के लिए जा रहे थे, आपने उन लोगों से कहा की हमारे साथ चलो हम दिखाते है कि श्रीत्रिवेणी जी ब्रज में ही है , फिर आप लोग अन्यत्र क्यों जा रहे हो तब लोगों ने आपसे आश्चर्यचकित होकर पुछा कि ब्रज में त्रिवेणी कहा है आपने कहा ऊँचेगाँव में और उनको ऊँचेगाँव लाये फिर आपने वहाँ की भूमि खोदकर श्रीत्रिवेणी के तीनों स्त्रोत सभी को प्रत्यक्ष दिखा दिये।
🌷उस समय दिव्य घाट एवं धाराओं से शोभायमान श्रीत्रिवेणी सखी गिरि से लेकर श्रीबलदेवजी के मन्दिर पर्यन्त प्रवाहित होती हुई सभी को दिखाई पडी । सबने वहीं पर स्नान - ध्यान किया।
🌷कहते हैं कि तीर्थराज प्रयाग को अपनी यह अवमानता सहन नही हुई और वे ब्राह्मण का भेष धारण कर श्रीनारायणभट्टजी के सम्मुख प्रकट हो गये और बोले आपने इन तीर्थयात्रियों को प्रयाग जाने से क्यों मना किया।आप हमसे शास्त्रार्थ के किजिये।
🌷फिर तीर्थराज प्रयाग और ब्रजभूमि को लेकर दोनों में महान शास्त्रार्थ हुआ। वर्णन आया है कि शास्त्रार्थ के आवेश में ब्राह्मण साक्षात् प्रयाग रूप में एवं श्रीनारायणभट्टजी साक्षात् श्रीनारदजी के रूप में प्रकट होकर शास्त्रार्थ करने लगे।
🌷सात दिन तक लगातार शास्त्रार्थ होता रहा अन्त में तीर्थराज प्रयाग ब्रज की महामहिमा के सम्मुख नतमस्तक हो गया उसी समय श्रीत्रिवेणीजी ने भी मूर्तिमती होकर दर्शन दिया और कहा कि जिस समय श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार श्रीराधाकुण्ड में समस्त तीर्थो का आगमन हुआ था उसी समय से मैं भी श्रीब्रजभूमि को छोडकर कही नही गयी हूँ और यहाँ पर नित्य निवास करती हूं । और तुम्हारी भक्ति से वशीभूत होकर ही प्रकट हुई हूं । जो लोग यहाँ की रज एवं जल से स्नान-अभिषेक आदि करेगे उन्हें त्रिवेणी स्नान का ही फल प्राप्त होगा।
🌷नोट- बरसाना गाँव में श्रीश्रीजी एवं ऊँचेगाँव में श्रीरेवतीरमण श्रीबलदेवजी के श्रीविग्रह श्रीनारायणभट्टजी के द्वारा ही प्रकटित है और अति प्रसिद्ध एवं परमपूज्य है। श्रीलाङिलेय नामक श्रीठाकुर जी जो स्वयं राधामाधव ने दिया थे , वही श्रीनारायणभट्टजी को ब्रज के समस्त तीर्थो का रहस्य बतलाते थे ।
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